बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश के बीच प्रशांत किशोर प्रदेश की पदयात्रा पर निकल पड़े हैं. पीके ने बुधवार को भागलपुर से ‘उद्घोष यात्रा’ शुरू किया, जिसके जरिए प्रदेश के अलग-अलग जिलों में 50 जनसभाएं संबोधित करेंगे. इस यात्रा के बहाने जनता के साथ सीधा संवाद स्थापित कर लोगों को जनसुराज के विचारधारा से जुड़ने और सियासी माहौल बनाने की कवायद शुरू की है.
चुनावी रणनीतिकार से सियासी पिच पर प्रशांत किशोर के लिए 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव साख का सवाल बन गया है. भागलपुर में ‘उद्घोष यात्रा ‘ को शुरू करने के साथ ही प्रशांत किशोर ने आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव, सीएम नीतीश कुमार और पीएम मोदी को सियासी कठघरे में खड़े करने का दांव चला. इसके लिए पढ़ाई और रोजगार के साथ जातिगत जनगणना को सियासी हथियार बनाने के संकेत दिए हैं. माना जा रहा है कि इन्हीं तीनों मुद्दे तैयार को लेकर जनता के बीच जाएंगे और अपने पक्ष में माहौल बनाते नजर आएंगे.
पीके की ‘बिहार यात्रा’ का रोडमैप
बिहार की सियासी जमीन पैदल नाप चुके प्रशांत किशोर एक बार फिर से प्रदेश की यात्रा पर निकल पड़े हैं. प्रशांत किशोर इस यात्रा के बहाने प्रदेश के अलग-अलग जिलों में जाकर जनसभाएं संबोधित करेंगे. भागलपुर की पीरपैंती से यात्रा शुरू हुई है, जो सुल्तानगंज जाएगी. इसके बाद 24 अप्रैल को बांका के धोरैया और मुंगेर के जमालपुर में जनसभा को संबोधित करेंगे. इसके बाद जमुई, नवादा, नालंदा, गया, औरंगाबाद, अरवल, गया के टिकारी, नवादा के गोविंदपुर, जमुई और बांका के बेलहर, भागलपुर के गोपालपुर और मुंगेर के तारापुर में रैली करेंगे. इस रैलियों के जरिए पीके अपने नीतियों और विचारों को लोगों तक पहुंचाएंगे.
प्रशांत किशोर सिर्फ रैलियों तक खुद को सीमित नहीं रखना चाहते हैं. ऐसे में 20 मई से पीके बिहार बदलाव यात्रा पर निकलने का प्लान बनाया है. इस यात्रा के प्रत्येक जिले के गांवों में जाकर लोगों से संवाद करेंगे. यह यात्रा उनका जनसंपर्क अभियान होगी, जहां वे आम जनता से खुद को कनेक्ट करने की कवायद करेंगे. इस यात्रा के बहाने से पीके अपनी जनसुराज्य पार्टी के सियासी आधार को मजबूत करने की रणनीति है.
बिहार चुनाव में पीके का सियासी एजेंडा
पीके ने बिहार में अपनी सियासी जड़े जमाने के लिए पढ़ाई और रोजगार के साथ जातिगत जनगणना और भूमिहीनों के जमीन का मुद्दा बनाएंगे. प्रशांत किशोर ने कहा, बिहार में जातिगत गणना को लेकर खूब सियासत हुई है. जिन लोगों ने ये कराया उनकी मंशा जनता की मदद करना नहीं बल्कि समाज को जातीय झंझट में डाल राजनीतिक फायदा उठाने की थी. जातिगत गणना के बाद सरकार ने पांच महत्वपूर्ण बातें कही थीं. तीस साल से ज़्यादा समय तक लालू और नीतीश ने राज किया. इसके बाद समाज के पिछड़े और दलित पिछड़े ही रह गए. चाहे शिक्षा की बात हो या सरकारी नौकरी में आने की. जब जातिगत गणना हुआ तब सरकार ने आरक्षण का दायरा बढ़ाने के फैसला के लिए केंद्र को लिखा था. उसकी वर्तमान में स्थिति क्या है.
प्रशांत किशोर ने कहा कि 94 लाख परिवार को रोजगार के सहायता के लिए प्रति परिवार के किस्त के आधार पर दो-दो लाख देने की बात थी. कितने परिवार को अभी तक पैसा मिला. 39 लाख परिवार को जिनके पास घर नहीं है. उन्हें एक लाख 20 हज़ार रुपया दिया जाएगा. कितने परिवार जो अभी तक ये राशि दी गई है. पीके ने दलितों के विश्वास जीतने के लिए नीतीश कुमार को दलित विरोधी कठघरे में खड़े करने की कवायद की है. जातिगत जनगणना पर सवाल खड़े करके पीके बिहार की कास्ट पॉलिटिक्स के माहौल को फीका करने की रणनीति है.
बिहार में जमीन विवाद बड़ा मुद्दा
पीके ने कहा कि नीतीश ने घोषणा की थी कि 2006 में की हर गरीब दलित को तीन डिसमिल जमीन दिया जाएगा, लेकिन अभी तक कितने लोगों को मिला इसकी जानकारी दे नीतीश सरकार. 50 लाख ऐसे परिवार जो महादलित समाज से आते है, उनके से मात्र दो लाख से कुछ ज्यादा परिवार को अभी तक जमीन दिया गया है. बाकी अभी भी बिना जमीन और मकान के हैं. उन्होंने कहा कि बिहार में जमीन सर्वे का काम भी काफी धीमा चल रहा है. अभी भी अस्सी प्रतिशत से ज्यादा लोगों का ना तो जमीन सर्वे हुआ और ना ही जमीन का डिजिटलाइजेशन हुआ है. जमीन सर्वे की वजह से घर घर में विवाद बढ़ गया है. बिहार में जमीन विवाद की वजह से लगभग साठ प्रतिशत हत्या हो रही है. बिहार में जमीन सर्वे में काफ़ी धांधली हुई है. सीओ जमकर पैसा कमा रहा है.